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सुवेंदु अधिकारी ने क्या किया?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को अब कुछ ही महीने बाकी हैं और इस वजह से वहां की राजनीति में उथल-पुथल शुरू हो गयी है. बीते 23 नवंबर को राज्य की मुख्य्मंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रमुख ममता बनर्जी के बेहद करीबी नेता सुवेंदु अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अधिकारी पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज थे. वे बीते कुछ महीनों से कैबिनेट की बैठकों और पार्टी के कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं हो रहे थे. उन्होंने अभी तक ममता बनर्जी का साथ छोड़ने की आधिकारिक घोषणा नहीं की है लेकिन उनके बयानों और व्यवहार से ऐसा लगता है कि वे जल्द ही ऐसा कर सकते हैं.
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सुवेंदु अधिकारी की राजनीतिक ताकत
सुवेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी और छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी, दोनों टीएमसी सांसद हैं. शिशिर अधिकारी मनमोहन सिंह सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. 2011 में ममता बनर्जी को सत्ता दिलाने में 2007 के नंदीग्राम आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभायी थी. इस आंदोलन की जमीन सुवेंदु अधिकारी ने ही तैयार की थी. पूर्वी मिदनापुर की नंदीग्राम सीट से ही विधायक सुवेंदु का प्रभाव न सिर्फ उनके क्षेत्र पर है, बल्कि आस-पास की एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर भी उनका राजनीतिक दबदबा माना जाता है. पश्चिम बंगाल के ये क्षेत्र कभी वामपंथ का गढ़ हुआ करते थे. लेकिन सुवेंदु ने अपने रणनीतिक कौशल से बीते कुछ समय में इन्हें टीएमसी का किला बना दिया. 2016 के विधानसभा चुनाव में सुवेंदु के दबदबे वाले जंगल महल, पूर्वी मिदनापुर और पश्चिमी बर्धवान जिले की 65 सीटों पर टीएमसी को करीब 48 फीसदी वोट मिले थे. ये आंकड़ा 2006 के विधानसभा चुनाव से 20 फीसदी ज्यादा था.
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मनाने की कोशिशें फेल
49 वर्षीय सुवेंदु अधिकारी को अपने पिता की तरह ही एक जननेता के रूप में जाना जाता है, साथ ही उनके पास एक मजबूत संगठनात्मक कौशल भी है. माना जाता है कि वे अगर टीएमसी से अलग होते हैं तो ममता बनर्जी को करीब दो दर्जन सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है. इन्हीं सब वजहों से ममता बनर्जी ने उन्हें मनाने की हरसंभव कोशिश की है. पार्टी सांसद और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और तृणमूल कांग्रेस नेता सुदीप बंधोपाध्याय इस संबंध में उनसे मुलाकात कर चुके हैं. इस बैठक के बाद टीएमसी ने दावा किया था कि सुवेंदु न तो कैबिनेट से अपने इस्तीफे पर अमल करेंगे और न पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होंगे. टीएमसी के इस दावे के अगले ही दिन सुवेंदु अधिकारी ने कथित रूप से पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद सौगत रॉय को एक मैसेज भेजा. इसमें उन्होंने लिखा, ‘मुझे क्षमा कीजिए, मैं (तृणमूल कांग्रेस से) के साथ और नहीं रह पाऊंगा…’ सुवेंदु अधिकारी के करीबियों का कहना था कि टीएमसी नेताओं के साथ हुई बैठक में उन मुद्दों पर चर्चा ही नहीं की गई, जो उन्होंने उठाये थे और मीडिया को यह बताया गया कि सब कुछ ठीक हो गया है. इसके बाद बीते सात दिसंबर को सुवेंदु अधिकारी के क्षेत्र में ही ममता बनर्जी ने एक बड़ी रैली की जिसमें वे या उनके परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं हुआ.
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नाराजगी की वजह
राजनीतिक पंडितों की मानें तो सुवेंदु अधिकारी ममता बनर्जी के भतीजे और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी से नाराज चल रहे हैं. इसके अलावा, जिस तरह से प्रशांत किशोर ने टीएमसी में संगठनात्मक बदलाव किया है, उससे भी वे नाखुश हैं. अधिकारी चाहते हैं कि पार्टी उनके प्रभाव वाले जिलों की 65 विधानसभा सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारे. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता एक समाचार पत्र से बातचीत में कहते हैं, ‘पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर चल रहा है. खास कर पूर्व मिदनापुर जिले से जुड़े चुनावी फैसलों में अधिकारी से राय लेने तक की ज़रूरत नहीं समझी गई. इसके अलावा ममता बनर्जी जिस तरह से अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर रही हैं उससे भी अधिकारी बंधुओं में भारी नाराजगी है.’
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भाजपा की भूमिका
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित शारदा चिटफंड घोटाले की जांच कर रही हैं, इस घोटाले में सुवेंदु अधिकारी के भी शामिल होने का आरोप लगता रहा है. कुछ समय पहले ही शारदा चिटफंड मामले के मुख्य अभियुक्त सुदीप्त सेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर उनसे पैसे लेने वाले कई नेताओं का जिक्र किया है. इस पत्र में सुवेंदु अधिकारी और टीएमसी छोड़कर भाजपा में आये मुकुल रॉय का भी नाम शामिल है. हाल में ही इस मामले में केंद्रीय एजेंसियों की तरफ से बंगाल के जिन पांच नेताओं को नोटिस जारी किया गया है, उनमें से एक सुवेंदु अधिकारी भी हैं. ऐसे में उनकी बगावत को इस मामले से भी जोड़कर देखा जा रहा है. टीएमसी नेताओं का आरोप है कि जिस तरह से पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिये दबाब डालकर मुकुल राय को अपने पाले में कर लिया था, अब वही तरीका वह सुवेंदु अधिकारी को लेकर अपना रही है.