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आम तौर पर चुनावी मौसम में कई नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी का रुख करते हैं. इस बार के लोकसभा चुनावों में भी यह दिख रहा है. इसमें खास बात यह है कि दूसरे दलों को छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की संख्या भाजपा छोड़कर जाने वाले नेताओं के मुकाबले अधिक है.
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इसकी एक वजह यह है कि जो लोग दूसरे दलों से भाजपा में आ रहे हैं, उनमें से अधिकांश को पार्टी लोकसभा चुनाव का टिकट दे रही है. लेकिन दूसरे दलों से कांग्रेस में आने वाले नेताओं के मामले में स्थिति ऐसी नहीं है. कहीं उन्हें टिकट नहीं मिल रहा तो कहीं उनकी सीट कांग्रेस ने सहयोगी दलों को दे दी है.
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इसका एक उदाहरण कीर्ति आजाद हैं. वे जब भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए तो यह उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर वे इस बार भी दरभंगा से ही चुनाव लड़ेंगे. लेकिन कांग्रेस ने इस सीट को बिहार में अपनी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को दे दिया.
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कांग्रेस में शामिल हो रहे नेताओं की एक शिकायत यह भी है कि भाजपा में दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को सीधे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी में शामिल कराते हैं, लेकिन कांग्रेस में हर बार यह काम कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं करते. लंबे समय से भाजपा में रहे शत्रुघ्न सिन्हा का ही उदाहरण लें. वे राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल होना चाह रहे थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. हालांकि, कांग्रेस ने उन्हें उनकी पुरानी सीट पटना साहिब से टिकट दे दिया है.
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इसके मुकाबले भाजपा में जब पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर को शामिल कराने की बात आई तो इसके लिए पार्टी ने बाकायदा एक बड़ा आयोजन किया. उन्हें पार्टी में शामिल कराने के लिए न सिर्फ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इसमें शामिल हुए बल्कि भाजपा में बेहद ताकतवर माने जाने वाले अरुण जेटली भी इस मौके पर मौजूद थे.