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नेपाल की राजधानी काठमांडू में बीती 22 फरवरी को एक बहुराष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनी ‘एन्सेल’ के दफ्तर के बाहर धमाका हुआ. इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई जबकि दो अन्य घायल हो गए. इसी दिन देश भर में कंपनी की दर्जन से ज्यादा मोबाइल टावरों को भी निशाना बनाया गया. इन हमलों के दो दिन बाद ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी)’ के नेता नेत्र बिक्रम चंद ‘बिप्लब’ ने इनकी जिम्मेदारी ली. इन हमलों के अलावा भी पिछले छह से आठ महीनों में नेपाल में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिसके बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या फिर इस हिमालयी देश में माओवाद अपने पैर पसारने लगा है.
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नेत्र बिक्रम चंद एक समय माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के सहयोगी हुआ करते थे. साल 2006 में ‘प्रचंड’ ने शांति प्रक्रिया में शामिल होने और राजनीति में आने का फैसला किया. इसके बाद बिक्रम चंद ने उनका साथ छोड़ दिया और अपनी एक नई पार्टी ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी)’ का गठन किया. उनका कहना था कि प्रचंड ने माओवादियों के साथ धोखा किया है, उन्होंने हजारों कैडर के उस सपने को तोड़ दिया जो सशस्त्र विद्रोह के जरिये सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे.
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पिछले कुछ महीनों में चंद गुट की ताकत में जिस तरह से इजाफा हुआ है है उससे प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और सत्ताधारी पार्टी के दूसरे बड़े नेता प्रचंड काफी चिंतित है. प्रचंड ने सार्वजनिक रूप से कहा भी है कि चंद गुट से उनकी जान को खतरा है. कुछ जानकार बताते हैं कि टेलीकॉम कम्पनी ‘एन्सेल’ पर हमला करना तो केवल एक बहाना था. इनके मुताबिक चंद गुट काफी पहले से कोई बड़ी बारदात करने की कोशिश में था जिससे वह सरकार को अपनी ताकत का अहसास करावा सके.
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नेपाल के कुछ पत्रकार यह भी बताते हैं कि चंद गुट को पहले किसी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि उसकी ताकत बहुत सीमित मानी जाती थी. नयी सरकार के गठन के बाद से यह माओवादी गुट सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. बीते कुछ महीनों में इसकी सक्रियता नेपाल के कई हिस्सों बढ़ी है और इसने कई हमलों को भी अंजाम दिया है. इस दौरान इसने व्यापारियों और बिल्डरों से जमकर वसूली भी की है.
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कुछ लोग एक और बात भी बताते हैं. इनके मुताबिक पुष्प कमल दहल ने जब शांति समझौते के बाद राजनीति में प्रवेश किया था तब कहा था कि उनके माओवादी गुट के कैडर नेपाली पुलिस और सेना में भर्ती कर लिए जाएंगे. लेकिन इनमें से आधे से भी कम लोगों को ही सेना या पुलिस में भर्ती किया गया. जिन्हें नौकरी नहीं मिली उनमें से कई लोग नाराज होकर चंद गुट में शामिल हो गए हैं.