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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल में ही जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना चाहती थी. बताया जाता है कि फरवरी आते-आते यह तय हो चुका था कि चुनाव का ऐलान होने से पहले ही जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटा लिया जाएगा. लेकिन उसी समय अचानक पुलवामा अटैक और बालाकोट एयर स्ट्राइक हो गए. इससे देश में एक अलग माहौल बन गया और इस फैसले को टाल दिया गया. सत्याग्रह की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर पुलवामा और बालाकोट नहीं होते तो 370 को हटाने का फैसला चार-पांच महीने पहले ही ले लिया गया होता.
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आजकल अक्सर बातचीत में भाजपा नेता यह कहते सुनाई देते हैं कि जो 70-72 साल में नहीं हो पाया, उसे दस साल में करना है. अपने इस कार्यकाल में मोदी सरकार इसी नीति पर काम कर रही है. ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार ने जो अपने पहले कार्यकाल में नहीं किया उसे दूसरे की शुरुआत में करने का फैसला किया गया. सरकार के एक सूत्र की मानें तो अमित शाह को गृह मंत्री बनाने के पीछे एक वजह यह भी थी. इसके अलावा अपने दूसरे कार्यकाल में पहले से भी ज्यादा बहुमत होने की वजह से मोदी सरकार का आत्मविश्वास भी काफी बढ़ा हुआ है.
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ऊपर से इमरान खान की अमेरिका यात्रा ने बचा-खुचा काम कर दिया. वहां इमरान खान के साथ डोनाल्ड ट्रंप ने कश्मीर पर जिस तरह का बयान दिया उससे निपटने के लिए भी मोदी सरकार ने धारा 370 को पूरी तरह से निष्प्रभावी करने की योजना पर फटाफट काम करना शुरु कर दिया. सरकार को एक आशंका यह भी थी कि आने वाले समय में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच सहयोग और बढ़ सकता है और तब ऐसा करना और मुश्किल हो जाएगा.
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अनुच्छेद 370 हटाने के लिए यह वक्त इसलिए भी चुना गया ताकि घाटी में ज्यादा फोर्स भेजने की वजह स्वतंत्रता दिवस की तैयारी को माना जाए. भाजपा के कुछ नेताओं ने ही यह फैलाया कि मुमकिन है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की बजाय लाल चौक पर झंडा फहराने जाएं. इस मामले में सुरक्षा से जुड़ी चीजों का जिम्मा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने संभाला. और 370 की कानून पेंचीदगी पर कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मिलकर काम किया. इसमें उन्हें अरुण जेटली का भी सहयोग मिला. राज्यसभा में यह फैसला दो-तिहाई बहुमत से पास हो, इसके लिए एक नया फॉर्मूला निकाला गया. इसके तहत अचानक विरोधी दलों के राज्यसभा सांसद एक-एक कर इस्तीफा देने लगे. ये इस्तीफे उन्हीं राज्यों में दिए गये जहां इस वक्त भाजपा की सरकार है. मतलब इन सीटों पर दोबारा चुनाव होगा और भाजपा उन्हीं नेताओं को दोबारा अपने सिंबल पर चुनाव जिताकर राज्यसभा भेज देगी.
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मोदी सरकार के इस एक ही फैसले से और भी कई बाज़ियां जीती गई हैं. अमित शाह को गृह मंत्री बने अभी दो ही महीने हुए हैं. और जिस अंदाज़ में उन्होंने आर्टिकल 370 से अपनी शुरुआत की है उससे साफ हो गया कि भाजपा में नंबर दो नेता कौन है. दो महीने बाद महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनाव होने हैं. तीनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं. जहां कांग्रेस लोक सभा चुनाव में मिली करारी हार से अभी भी जूझ रही है वहीं आर्टिकल 370 के जरिये भाजपा ने इन चुनावों की तैयार लगभग खत्म कर ली है. इसके अलावा अब भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह बात और भी मजबूती से कह सकते हैं कि उनकी सरकार वाकई मजबूत है और वे अपने सबसे बड़े चुनावी मुद्दे भूले नहीं हैं.