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भाजपा के सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से ज्यादा संसाधन बंगाल भेजे गए हैं. यहां तक कि बंगाल के चुनाव की मॉनिटरिंग भी दिल्ली से ज्यादा गांधीनगर से की जा रही है. और गुजरात में चुनाव खत्म होते ही वहां के कई नेताओं को भी बंगाल भेजा गया है. भाजपा का आकलन है कि उत्तर प्रदेश में 2014 जैसे नतीजे नहीं आने वाले, इसलिए पश्चिम बंगाल की तरफ बहुत ध्यान देना बेहद जरूरी है.
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ममता बनर्जी के लिए भी ये लड़ाई प्रधानमंत्री बनने और अपने किले को बचाये रखने की है. जानकारों का मानना है कि अगर गठबंधन की सरकार बनी तो दीदी दिल्ली जाने की कोशिश करेंगी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी कोलकाता की गद्दी संभालेंगे. लेकिन ऐसा तभी होगा जब तृणमूल कांग्रस को 42 में से कम से कम 38 सीटें मिले. नहीं तो न केवल उन्हें प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब छोड़ने पड़ेंगे बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने की कोशिश भी करनी पड़ सकती है. ऐसे हालात में दोनों ही पार्टियां कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं.
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भाजपा के सूत्र बताते हैं पार्टी इस बार पश्चिम बंगाल का चुनाव उसी अंदाज़ में लड़ रही है जैसे 2014 में उसने उत्तर प्रदेश का लड़ा था. 2014 से पहले वो उत्तर प्रदेश में चौथी ताकत थी. लेकिन ऐसा माहौल बनाया गया मानो सभी की असली टक्कर वहां भाजपा से ही है. बंगाल भी इस बार वैसी ही एक प्रयोगशाला बन गया है.
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जब लोकसभा चुनाव का ऐलान हुआ था तो उस वक्त भाजपा के पास यहां की सभी सीटों पर लड़ने के लिए उम्मीदवार तक नहीं थे. लेकिन इसके बाद दूसरी पार्टियों से जो भी भाजपा में आया उसे टिकट दे दिया गया. 2014 में उत्तर प्रदेश में भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ था.
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जानकारों के मुताबिक भाजपा को विपक्ष के दो दिग्गज नेताओं से सबसे ज्यादा खतरा लगता था. इनमें से एक थे नीतीश कुमार और दूसरी ममता बनर्जी. नीतीश कुमार अब नरेंद्र मोदी के साथ हैं. और ममता बनर्जी को वो इस बार उनके ही गढ़ में ढेर कर देना चाहती है.