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भारतीय बाजार में सोने की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 38,470 रू प्रति दस ग्राम तक पहुंच चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने की कीमतें बीते छह सालों के सर्वोच्च स्तर पर हैं. पर ऐसा हो क्यों रहा है?
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सोना परंपरागत तौर पर एक सुरक्षित निवेश रहा है, लेकिन दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के जुड़ने के बाद यह माना जाने लगा था कि इसके मुकाबले इक्विटी और अन्य चीजों में निवेश ज्यादा फायदे का सौदा है. लेकिन पिछले कुछ समय से दुनिया भर के शेयर बाजारों में मुनाफा कम हुआ है. और आईएमएफ ने अपने हालिया आकलन में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को पहले से कम कर दिया है. ऐसे में पूरी दुनिया में लोग एक बार फिर सोने की ओर लौटने लगे.
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लेकिन, आम निवेशक के साथ-साथ दुनिया के कई सेंट्रल बैंक भी ऐसा क्यों कर रहे हैं? वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल के अनुसार, पूरी दुनिया के सेंट्रल बैंक 2019 की पहली छमाही तक 374 टन सोना खरीद चुके हैं. इसमें से 224 टन सोना साल की दूसरी तिमाही में खरीदा गया. यह वही समय है जब चीन-अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध चरम पर पहुंच गया था. ऐसे में चीन अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है. इसके चलते वह स्वर्ण भंडार बढ़ा रहा है ताकि अपनी मुद्रा के अवमूल्यन की हालत में वह सोने के सहारे डॉलर से निपट सके.
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अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ाने की रणनीति पर रूस भी चल रहा है. इसकी वजह आर्थिक से ज्यादा सामरिक है. कई सामरिक मसलों पर अमेरिका से मतभेद की स्थिति में पश्चिमी देश उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकते हैं. ऐसे में डॉलर पर कम से कम आत्मनिर्भरता रूस की नीति का स्थायी हिस्सा है.
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वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल के मुताबिक चीन और रूस के अलावा तुर्की, कज़ाकिस्तान के सेंट्रल बैंक सोने के चार सबसे बड़े खरीदार हैं. तुर्की और कज़ाकिस्तान जैसे देश भी डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा को गिरने से रोकना चाहते हैं इसलिए अपना स्वर्ण भंडार बढ़ा रहे हैं. भारत के रिजर्व बैंक ने भी 2019 के वित्तीय वर्ष में सोने की खरीद बढ़ाई है और स्वर्ण भंडारण के मामले में वह दुनिया के सेंट्रल बैंकों में दसवें नंबर पर आ चुका है.