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हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एमएस स्वामीनाथन कर्जमाफी को अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं मानते. उन्होंने राजनेताओं से अपील की है कि चुनावी फायदे के लिए वे इस तरह के कदम न उठाएं. उनके मुताबिक कर्ज तभी माफ होना चाहिए जब किसान को पैसा लौटाने में काफी दिक्कत हो रही हो और यह कदम भी कभी-कभार ही उठाया जाना चाहिए. उनके मुताबिक कर्जमाफी कभी भी कृषि नीति का हिस्सा नहीं बननी चाहिए. एमएस स्वामीनाथन मानते हैं कि जरूरत खेती को फायदेमंदर और आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने की है.
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चर्चित अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि कर्जमाफी जैसे फैसलों से राजस्व पर बुरा असर पड़ता है. उनके मुताबिक कर्जमाफी का सबसे ज्यादा फायदा सांठ-गांठ वालों को मिलता है. रघुराम राजन मानते हैं कि लाभ गरीबों को मिलने के बजाय ऐसे किसानों को मिलता है जिनकी स्थिति बेहतर है. वे चुनाव आयोग को भी लिख चुके हैं कि इस तरह के चुनावी वादों पर रोक लगा दी जाए.
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अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय से जुड़े अर्थशास्त्री अमित बसोले भी मानते हैं कि कर्जमाफी हल नहीं है. उनके मुताबिक किसान के असल मुद्दे हाशिये पर हैं. एक साक्षात्कार में वे कहते हैं कि सिंचाई और बिजली से लेकर फसल के भंडारण और उसे लाने-ले जाने की व्यवस्था तक तमाम मोर्चों पर काफी काम की जरूरत है. उनके मुताबिक उत्पादों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के साथ-साथ बढ़ती लागत और दोषपूर्ण आयात नीति भी समस्या है. साथ ही वे मानते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद के मौजूदा ढांचे को भी मजबूत करना होगा.
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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के ग्रुप चीफ एडवाइजर सौम्य कांति घोष का मानना है कि किसान समुदाय को संकट से उबारने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. उनके मुताबिक छोटे और सीमांत किसानों के लिए आय बढ़ाने की कोई योजना एक सार्थक कदम हो सकती है. घोष की मानें तो ऐसी योजना की लागत करीब-करीब 50 हजार करोड़ रुपये यानी जीडीपी के 0.3 फीसदी तक आएगी. उनके मुताबिक कर्जमाफी ग्रामीण समस्या को दूर करने का निकृष्टतम साधन है.
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राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की सलाहकार और अर्थशास्त्री राधिका पांडे भी कर्जमाफी को ठीक नहीं मानतीं. उनके मुताबिक राज्यों के मुकाबले केंद्र का राजकोषीय घाटा ज्यादा रहता है, लेकिन जिस तेजी से राज्य सरकारों ने कर्जमाफी की घोषणा की है उससे अब राज्यों का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ जाएगा. इसकी भरपाई के लिए उनको केंद्र से या फिर दूसरे विकल्पों के माध्यम से कर्ज लेना होगा. इससे कहीं न कहीं दूसरे विकास कार्य प्रभावित होंगे. बाहर से कर्ज लेने पर राज्य सरकारों को इसकी अदायगी के लिए ज्यादा ब्याज भी देना होगा. राधिका पांडे के मुताबिक कर्ज माफ करने से किसानों की हालत सुधरनी होती तो ऐसा बहुत पहले हो चुका होता.