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बीते शुक्रवार को नेपाल के ‘डिपार्टमेंट ऑफ ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (डीडीए) ने देश में भारत-निर्मित कोरोना वायरस वैक्सीन कोवीशील्ड के आपातकालीन उपयोग की अनुमति दे दी. डीडीए के महानिदेशक भरत भट्टराई ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘हमने कोवीशील्ड को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दे दी है…अब इस वैक्सीन का नेपाल में आयात कर लोगों को लगाया जा सकता है.’ उन्होंने यह भी बताया कि तीन कंपनियों ने नेपाल में अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के लिए आवेदन दिया था, इनमें दो भारतीय कंपनियां – सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोमेट्रिक – और एक चीनी कंपनी – सिनोफार्म – थी. उनके मुताबिक अभी कोवीशील्ड को मंजूरी मिली है, बाकी दोनों कंपनियों के आवेदनों की समीक्षा की जा रही है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली इस समय भारत दौरे पर हैं, उनकी इस यात्रा का प्रमुख एजेंडा कोरोना वैक्सीन ही है. नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नेपाल सरकार भारत से वैक्सीन की एक करोड़ 20 लाख खुराकों की मांग करने वाली है.
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नेपाल ने बीते साल दिसंबर से ही भारत से उसे वैक्सीन उपलब्ध कराने का आग्रह करना शुरू कर दिया था. भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने इस संबंध में न केवल भारतीय अधिकारियों से बातचीत शुरू कर दी थी, बल्कि भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अधिकारियों से भी मुलाकात की थी. कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया है. भारत में पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट, जो कि दुनिया में वैक्सीन का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है, इसकी मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर है. इस टीके को 70 से 90 प्रतिशत तक प्रभावी बताया गया है. इसे दुनिया में कोरिया वायरस की सबसे अच्छी तीन वैक्सीनों में से एक माना जा रहा है.
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बीते कुछ सालों से नेपाल के चीन के साथ रिश्ते काफी ज्यादा प्रगाढ़ हो गए हैं. दूसरी तरफ नेपाल और भारत के रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं हैं. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली कई बार भारत के खिलाफ बयानबाजी भी कर चुके हैं. ऐसे में नेपाल का चीन से वैक्सीन न लेकर भारत को तरजीह देना थोड़ा हैरान करता है. जानकार चीनी वैक्सीनों पर उठ रहे सवालों को इसका पहला कारण बताते हैं. चीन की दो फार्मा कंपनियों सिनोवैक और सिनोफार्म ने अब तक वैक्सीन का निर्माण किया है. चीन की ओर से सिनोवैक की वैक्सीन के 90 फीसदी से ज्यादा प्रभावी होने का दावा किया गया था. यह दावा सिनोवैक वाली वैक्सीन के दो ट्रायल्स के आधार पर किया गया जिन्हें 144 और 600 लोगों पर किया गया था. वैक्सीन को तीसरे ट्रायल से पहले ही इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गयी. लेकिन, जब ब्राजील के बुटनान इंस्टीट्यूट ने इसका तीसरा ट्रायल किया तो यह वैक्सीन केवल 50.4 फीसदी लोगों पर ही असरदार साबित हुई है. इंडोनेशिया में भी इस वैक्सीन को केवल 65 फीसदी ही प्रभावी पाया गया.
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चीन की दूसरी वैक्सीन सिनोफार्म के तीसरे ट्रायल के अंतरिम नतीजे बीते 30 दिसंबर को जारी किये गए. कंपनी ने बताया कि यह 79 फ़ीसदी तक असरदार है. लेकिन इस महीने की शुरुआत में एक चीनी स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉक्टर ताओ लिना ने सिनोफार्म वैक्सीन को बेहद खतरनाक बताया. उन्होंने चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर अपने एक ब्लॉग में यह लिखा कि सिनोफार्म दुनिया की सबसे असुरक्षित वैक्सीन है और इसके 73 तरह के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) देखने को मिल सकते हैं. इसमें इंजेक्शन लगने के स्थान पर दर्द, सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर, दिखाई न देना और स्वाद को महसूस न करना और पेशाब में दिक्कत जैसे साइड इफेक्ट्स शामिल हैं. हंगामा होने पर डॉक्टर ताओ लिना अपने बयान से पलट गए. उनके ब्लॉग को भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म से हटा दिया गया. हालांकि, तब तक ताओ लिना का बयान दुनिया भर के अखबारों की सुर्खियां बन चुका था.
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चीन की दोनों वैक्सीन भारतीय वैक्सीनों से बहुत ज्यादा महंगी हैं. बीबीसी के मुताबिक चीन में सिनोवैक वैक्सीन की एक डोज की क़ीमत करीब 400 यूआन (60 डॉलर, करीब 4500 रुपये ) है. बीते अगस्त में चीन की दूसरी वैक्सीन सिनोफार्म के उच्च अधिकारियों ने कहा था कि उनकी वैक्सीन की दो डोज की कीमत 1000 यूआन (करीब 11000 रुपये) से ज्यादा नहीं होगी. हालांकि, बीते दिसंबर के अंत में चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने बताया था कि दोनों ही कंपनियां चीन की सरकार को 200 यूआन (2200 रुपये) में एक डोज देगी. उधर, भारतीय वैक्सीन कोवीशील्ड की एक डोज भारत सरकार को महज 200 रुपए में ही मिल रही है. सीरम इंस्टीट्यूट के मुताबिक खुले बाजार में कोवीशील्ड की कमत 1000 रुपए से कम होगी. यानी अगर नेपाल भारत से कोवीशील्ड बाजार के दाम पर भी खरीदता है तो भी यह चीन से आधे से भी कम दाम पर उसे मिलेगी.