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पिछले दिनों सूखे की समस्या पर नज़र रखने वाली व्यवस्था ‘ड्रॉट अर्ली वॉर्निंग सिस्टम’ के हवाले से ख़बर आई कि भारत का 42 प्रतिशत हिस्सा ‘असामान्य सूखे’ की चपेट में है. देश में बढ़ते जल संकट की ओर इशारा करने वाली ये इस साल की अकेली रिपोर्ट नहीं है. नीति आयोग का भी कहना है कि 2020 तक देश में दस करोड़ लोग पानी की कमी की समस्या का सामना कर रहे होंगे.
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भारत सरकार के केंद्रीय जल आयोग की मानें तो देश के 90 प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर पिछले 10 साल के औसत से कम हो गया है. ऐसे में सवाल है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस संकट से निपटने के लिए क्या कर रही हैं. सरकारों का दावा है कि वे नदियों के प्रदूषण को दूर करने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च कर रही हैं. लेकिन हक़ीक़त ये है कि तमाम कोशिशों के बाद भी इनमें जरूरी सुधार नहीं हो पा रहा है.
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अगर हालात को जमीन पर देखें तो हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि गंगा नदी का पानी पीने योग्य नहीं है. जिस रास्ते से गंगा नदी गुज़रती है, वहां अलग-अलग फ़ासले पर लगाए गए 86 लाइव निरीक्षण केंद्रों में से 79 जगहों का पानी सफ़ाई के बाद भी नहीं पिया जा सकता.
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हालात दूसरी नदियों के भी अच्छे नहीं हैं. स्थानीय रिपोर्टों की मानें तो नर्मदा का पानी पहली बार अपने उद्गम स्थल अमरकंटक पर ही घट गया है. ख़बरों के मुताबिक़ गंगा की तर्ज पर देश की 13 नदियों को फिर से ‘जीवित’ करने की योजना तो बनाई जा रही है, लेकिन यह काम कब तक पूरा होगा, या इनका हश्र भी गंगा जैसा ही होगा, इस बारे में फ़िलहाल कोई दावा नहीं किया जा सकता.
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इस बीच देश की बढ़ती जनसंख्या भी जल संकट के मुद्दे का एक अहम पहलू है. रिपोर्टें बताती हैं कि 2030 तक भारत डेढ़ अरब से ज़्यादा की जनसंख्या वाला देश बन जाएगा. यहां वर्तमान में ही लोग असमान जल वितरण की समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में 2030 तक यह समस्या और बड़ी चुनौती बन सकती है.