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अमेरिका और चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध में परस्थितियां और खराब होती जा रही हैं. बीते महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के 200 अरब डॉलर के उत्पादों पर आयात शुल्क ढाई गुना तक बढ़ा दिया. अमेरिका के इस कदम के जवाब में चीन ने 60 अरब डॉलर के अमेरिकी उत्पादों पर 25 फीसदी का आयात शुल्क लगा दिया. साथ ही उसने अमेरिकी खेती की रीढ़ माने जाने वाले सोयाबीन के आयात पर भी रोक लगा दी.
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यह सब तब हुआ जब व्यापार युद्ध खत्म करने को लेकर अमेरिका और चीन के बीच बैठकों का दौर जारी है. कई जानकार मानते हैं कि जैसी परस्थितियां बनी हुई हैं उन्हें देखकर निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर कोई आशा नहीं जगती.
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अमेरिकी अर्थशास्त्री ग्रेग राइट बताते हैं कि दोनों के बीच कुछ ऐसी बुनियादी चीजों पर बात नहीं बन पा रही है, जो सालों से चीनी अर्थव्यवस्था की जान हैं. इनमें से एक चीन द्वारा अपनी कंपनियों को दी जाने वाली भारी सब्सिडी है. अमेरिका का कहना है कि इस सब्सिडी की वजह से चीनी कंपनियां अमेरिका में कम कीमत पर अपना उत्पाद बेचती हैं. इसके चलते अमेरिकी कंपनियों के उत्पादों को लोग नहीं खरीदते हैं. इससे न सिर्फ अमेरिका को भारी व्यापार घाटा होता है बल्कि अमेरिकी कंपनियों में नई नौकरियां भी पैदा नहीं होती.
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चीन में बाहरी कंपनियों के निवेश को लेकर भी काफी कड़े नियम हैं. इनके मुताबिक विदेशी कंपनियों को चीन में निवेश के लिए यहां की कंपनी से साझेदारी करना जरूरी है. अमेरिकी कंपनियां इस नियम का सख्त विरोध करती रही हैं. इनका कहना है कि इसके जरिए चीनी कंपनिया उनके तकनीकी ज्ञान की चोरी कर लेती हैं. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा कराई गयी जांच में सामने आया है कि चीन ऐसा करके हर साल अमेरिका को सैकड़ों अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाता है.
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डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के सामने इन नियमों को पूरी तरह से बदलने की शर्त रखी है, जिसके लिए चीन तैयार नहीं है. जानकारों की मानें तो कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी में चीन इसलिए अभी कोई बदलाव नहीं कर सकता क्योंकि इस समय उसकी अर्थव्यवस्था काफी कमजोर स्थिति में है. और विदेशी कंपनियों के चीन में व्यापार करने संबंधी नियमों में भी वो अचानक बदलाव नहीं कर सकता क्योंकि उस हालत में अन्य देश भी उससे ऐसा करने को कहेंगे.