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‘जजमेंटल है क्या’ की कहानी उसी के आसपास की है जो कि ट्रेलर दिखा चुका है. कंगना रनोट का किरदार बॉबी अपने नए किराएदार केशव (राजकुमार राव) पर शक करता है कि वह साइको है, खूनी है. फिल्म अंत तक इसी रहस्य को जानने की घुमावदार और रोमांचकारी यात्रा दिखाती है. कंगना का किरदार बॉबी एक्यूट साइकोसिस नाम की मानसिक बीमारी से पीड़ित है. फिल्म आखिर तक उसके पागलपन की टेक लेकर दर्शकों को उलझाए चलती है कि उसने जो कहा वह सच है या उसका पागलपन?
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फिल्म में कई सीन आपको बेवजह भी लगेंगे, जैसे सीता और रामायाण वाला सब-प्लॉट. लेकिन किरदार के माइंडस्पेस को जानने के लिए ये बेहद दिलचस्प दृश्य हैं. अगर आप एक्यूट साइकोसिस नामक बीमारी के लक्षणों से वाकिफ हैं तो आपको फिल्म में कई जगह उसका सही चित्रण करने वाले ऐसे कई सारे सीन मिलेंगे.
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कंगना रनोट के अभिनय को देखकर लगता है कि यह उनके लिए एक आसान किरदार रहा होगा क्योंकि वे ऐसे अति में डूबे किरदार करती रही हैं. लेकिन यह फिल्म परतदार है और एक तरह से बॉबी के किरदार की कैरेक्टर-स्टडी भी है, इसलिए इस किरदार को जरूरी गहराई देना इतना आसान नहीं रहा होगा. इसके लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए. इसमें एक बात जरूर खटकती है कि अपने इस किरदार को भी उन्होंने आपबीती-नुमा स्वर दे दिया है.
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कंगना के होने से राजकुमार राव को इस फिल्म में थोड़ा कम तारीफों से संतोष करना पड़ेगा. लेकिन सच यही है कि अगर वे केशव के किरदार को जरूरी रहस्यमयी मजबूती नहीं देते तो कंगना का किरदार इतना निखर कर नहीं आता. केशव के पात्र में अंत तक उनका काम देखने लायक है. आम इंसान के रूप में रहते हुए भी वे अपने किरदार को कई दिलचस्प शेड्स से नवाजते हैं.
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‘जजमेंटल है क्या’ के लिए कंगना रनोट को ढेर सारी तारीफें मिलने वाली है, लेकिन इस फिल्म का मुख्य टेलेंट तेलुगू सिनेमा से आए निर्देशक प्रकाश कोवलामुडी, उनकी पत्नी और लेखिका कनिका ढिल्लन तथा सिनेमेटोग्राफर पंकज कुमार हैं. इन तीनों ने मिलकर मानसिक बीमारी, घरेलू हिंसा और ट्रॉमा से जूझते किरदार बॉबी के पागलपन को जो ‘विजुअल लैंग्वेज’ दी है, वह अद्भुत है.