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मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’ हिंदी सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिनी जाती है. मुंबई की झोपड़पट्टियों में सांस लेने वाली कठिन जिंदगियों का यथार्थ 1988 में आई इस फिल्म से बेहतर कोई नहीं दिखा पाया है. यह निर्देशिका जोया अख्तर को फिल्मकार बनने के लिए प्रेरित करने वाले कारणों में से भी एक है. गली बॉय में धारावी का बेहतरीन यथार्थपूर्ण चित्रण देखते हुए समझ आता है कि इस ईमानदारी के पीछे कितनी महान फिल्म का प्रभाव छिपा है.
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धारावी के रैपर नेजी और डिवाइन के जीवन से प्रभावित ‘गली बॉय’ एक अंडरडॉग की कहानी है. यह एक ड्राइवर के साधारण बेटे मुराद के अपने सपनों को पहचानने, उन्हें पंख देने और उन पंखों के सहारे खुद को उड़ना सिखाने का किस्सा है. अंडरडॉग की कहानियां कहने वाली अधिकतर फिल्में एक निश्चित टेम्पलेट का उपयोग करती हैं और ‘गली बॉय’ भी अपवाद नहीं है. फिल्म देखते वक्त आपको पता रहता है कि अंडरडॉग हीरो अंत में जीतेगा ही.
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रीमा कागती और जोया अख्तर की प्रखर लिखाई तथा जोया अख्तर के कमाल निर्देशन के चलते इस जानी-पहचानी कहानी में भी गहरे डूबा जा सकता है. हर छोटे-बड़े इमोशन को खूबसूरती से उभारने वाली यह संवेदनशील लिखाई कई जगहों पर जादुई असर करती है. जोया अख्तर साइलेंस का अद्भुत उपयोग भी करती हैं और उनकी फिल्म की खामोशियां देर तक आपके साथ रहती हैं.
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अभिनय की बात करें तो फिल्म में अभिनय सिर्फ उनका उम्दा नहीं है जो फिल्म में हैं ही नहीं! आलिया भट्ट के नरम-गरम किरदार सफीया को इतना कमाल और प्रोग्रेसिव लिखा गया है कि मजा आ जाता है. ऊपर से आलिया आला अभिनय ही करती हैं, इसलिए मजा दोगुना हो जाता है. बिना शक, रणवीर सिंह फिल्म की आन-बान और शान हैं. ‘रॉकस्टार’ के लिए जो काम रणबीर कपूर ने किया था वही ‘गली बॉय’ के लिए रणवीर सिंह करते हैं और अपने अभिनय से फिल्म के स्तर को बहुत ऊंचा उठा देते हैं.
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18 गीतों-कविताओं वाला संगीत भी फिल्म की एक और विशेषता है जो धारावी की तरह ही फिल्म का एक और मजबूत किरदार है. नैरेटिव में खूबसूरती से पिरोए गए गीत हैं और कविता की टेक लेने वाले रैप तो हर जगह ही शानदार है. इन सबके लिए ‘गली बॉय’ नहीं देखने की गलती मत कीजिएगा. अच्छे सिनेमा का टाइम इतने जोर-शोर से कभी-कभार ही आता है!