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ओमंग कुमार निर्देशित फिल्म पीएम नरेंद्र मोदी आपको डराती है. इसलिए कि इस फिल्म को देखने के बाद नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थकों को उनमें नज़र आने वाली छोटी-मोटी कमियां भी दिखना बंद हो सकती हैं. ये फिल्म मोदी जी के हर अच्छे-बुरे किए को जस्टिफाई करने की कोशिश करती है. शायद यही वजह थी कि फिल्म को किसी तरह चुनावों से पहले रिलीज करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा था.
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नरेंद्र मोदी की इस अनऑफिशियल बायोपिक में उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर दिखाया गया है जिसमें कूट-कूटकर ठसाठस अच्छाइयां भरी हुई हैं. यह फिल्म गलती से भी गलती न करने वाले नरेंद्र मोदी का हिमालय से लेकर पीएमओ तक का सफर दिखाती है. इस सफर में इतना ओवर द टॉप ड्रामा है कि ये जौहर औऱ बड़जात्या को भी लजा सकता है.
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फिल्म का एकमात्र उद्देश्य मोदी जी की छवि को धवल-उज्जवल बनाना है. 2002 के गुजरात दंगे हों या मोदी पर लगने वाले कट्टर हिंदुत्व के आऱोप. फिल्म इन सभी दागों को घिस-घिसकर निकाल देना चाहती है.
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फिल्म के तकनीकी पक्षों की बात करें तो इसकी एडिटिंग काफी बुरी है. उस पर विवेक ओबेरॉय का अभिनय इसे और अझेल बनाता है. वे न तो प्रधानमंत्री की तरह दिखते हैं, न बोलते हैं और न ही अपना कोई ऐसा स्टाइल बनाते हैं जो मोदी सरीखे व्यक्तित्व का प्रभाव पैदा कर सके. मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के किरदारों को देखकर लगता है, जैसे वे कुछ दिन पहले रिलीज हुई फिल्म द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर से उठाकर लाए गए हों.
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ये सही है कि ओमंग कुमार को सिनेमैटिक लिबर्टी दी जानी चाहिए. लेकिन उन्हें भी याद रखना चाहिए कि नरेंद्र मोदी जैसे अति-लोकप्रिय नेता पर फिल्म बनाते हुए थोड़े-बहुत तथ्यों का भी इस्तेमाल करना उनकी नैतिक दायित्व था. लेकिन ये बात तो वे तब समझते जब वे बतौर फिल्मकार यह फिल्म बना रहे होते! फिलहाल उनकी इस फिल्म को केवल और केवल उनकी अंधभक्ति के लिहाज से ही देखा जा सकता है.