शरीर में कम या ज्यादा पसीना आना हमेशा चिंताजनक होता है. कम पसीना आने की वजह आमतौर पर डिहाइड्रेशन होती है. इसे खूब पानी पीकर और कसरत कर सामान्य किया जा सकता है. लेकिन ज्यादा पसीना आना अपेक्षाकृत चिंताजनक बात हो जाती है. इसे विज्ञान की भाषा में हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं. यह कई बार मधुमेह, इंफेक्शन, लिम्फैटिक ट्यूमर का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा शराब का ज्यादा सेवन भी आपको इसका शिकार बना सकता है. इन दोनों ही समस्याओं से निपटने का पहला उपाय जीवनशैली में सुधार करना हो सकता है.
1
हमारे शरीर में तकरीबन तीस से चालीस लाख स्वेद ग्रंथियां (पसीना छोड़ने वाली ग्रंथियां) होती हैं. ये त्वचा के नीचे रहने वाली बारीक घुमावदार नलियां होती हैं जो शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का जरूरी काम करती हैं. यह जानना दिलचस्प है कि शरीर के अलग-अलग अंगों में पाई जाने वाली स्वेद ग्रंथियां भी अलग-अलग तरह की होती हैं जैसे एपोक्राइन, एक्रेन और सबेशियस.
2
वर्क आउट के दौरान जिन ग्रंथियों से पसीना आता है वे एपोक्राइन ग्लैंड कही जाती हैं. ये ग्रंथियां बगलों और यौन अंगों के आसपास होती हैं. इन ग्रंथियों से आने वाला पसीना शरीर में एड्रेनलाइन हॉर्मोन रिलीज होने पर बनता है. एपोक्राइन ग्लैंड से निकलने वाले पसीने में थोड़ी मात्रा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की भी होती है इसीलिए अक्सर बाजुओं के आसपास कपड़ों पर पसीने के दाग बन जाते हैं. इसमें पैदा होने वाली गंध शरीर में रहने वाले हैल्दी बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण होती है.
3
शरीर में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली स्वेद ग्रंथि, एक्रेन ग्लैंड है. ये हथेलियों, तलवों और माथे पर सबसे ज्यादा होती हैं. एक्रेन ग्लैंड्स से निकलने वाला पसीना साफ और गंधरहित होता है और तापमान नियंत्रित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है. ये ग्रंथियां हाइपोथैलेमस द्वारा नियंत्रित होती हैं जो भूख-प्यास और तापमान नियंत्रित करने के अलावा लोगों से आपके व्यवहार को नियंत्रित करने वाले हॉर्मोंस को भी नियंत्रित करता है. यही कारण है कि गुस्सा, तनाव, चिंता या अचंभा होने की स्थिति में भी हमारी हथेलियों पर पसीना आने लगता है.
4
चेहरे और सिर (स्कैल्प) पर पाई जाने वाली स्वेद ग्रंथियां, सबेशियस ग्लैंड्स कही जाती हैं. इन ग्रंथियों से आने वाला पसीना अपेक्षाकृत तैलीय लेकिन गंधहीन होता है. इन ग्रंथियों का काम चेहरे और बालों को पानी से बचाना और चिकनाहट बनाए रखना होता है. मनुष्य में धीरे-धीरे सबेशियस ग्लैंड्स घटती जा रही हैं क्योंकि आज के समय उनका ज्यादा उपयोग नहीं रह गया है. इसलिए शरीर के इन हिस्सों में भी तापमान नियंत्रण का मुख्य काम एक्रेन ग्लैंड्स ही करती हैं.