
कलाकार: राजीव खंडेलवाल, चैल्सी प्रैस्टन क्रेफर्ड, उषा जाधव | लेखक-निर्देशक: अभिजीत देवनाथ | रेटिंग: 2.5/5
ब्यूरो | 04 जनवरी 2019
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साल का पहला शुक्रवार एक ऑफबीट फिल्म के नाम रहा – सॉल्ट ब्रिज. इसकी कहानी हाल ही में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे एक प्रवासी हिंदुस्तानी के बारे में है जिसका किरदार राजीव खंडेलवाल ने निभाया है. यह फिल्म न सिर्फ प्रवासियों की जिंदगी में आने वाले संघर्षों पर बात करती है बल्कि रिश्तों पर एक दिलचस्प नजरिया भी पेश करती है.
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सॉल्ट ब्रिज में कार चलाना सीख रहे इसके नायक की दोस्ती एक शादीशुदा ऑस्ट्रेलियन महिला से हो जाती है. विदेश में बसा हिंदुस्तानी समाज उनकी इस दोस्ती के गलत मायने निकालने लगता है. तमाम दबावों के बीच नायक किसी बात की सफाई नहीं देता और इस वजह से एक अनजान मुल्क में, अपने ही लोगों की कम्युनिटी से दूर कर दिया जाता है.
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फिल्म में उषा जाधव, राजीव खंडेलवाल की पत्नी बनी हैं, और विदेशी मूल की एक्ट्रेस चैल्सी क्रेफर्ड उनकी दोस्त. इसके शुरुआती लंबे हिस्से तक आपको यह कहानी काफी स्टीरियोटाइप्ड लगती है. इसमें सांवले रंग की हिंदुस्तानी, घरेलू औऱ हमेशा ऊंची आवाज में बात करने वाली पत्नी के साथ रहने को मजबूर एक नायक और उसके एक सुंदर-सौम्य विदेशी महिला के प्रति आकर्षण जैसी जानी-पहचानी सी बातें हैं. लेकिन सॉल्ट ब्रिज जल्द ही इन क्लीशों और स्टीरियोटाइप्स को सर के बल खड़ा कर, आपको हैरत में डाल देती है. तब वह एक ऐसा दिलचस्प नजरिया व विचार पटकथा में पिरोती है जिसे देखने की हमें आदत नहीं है.
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‘सॉल्ट ब्रिज’ का शिल्प आज के जमाने की फिल्मों सा नहीं है. न ही स्टाइल, न रफ्तार, और न गाने. साथ ही एडिटिंग नौसिखियों वाली है, कई सीन खराब तरीके से फिल्माए गए हैं, सैकेंड हाफ जरूरत से ज्यादा लंबा है, क्लाइमेक्स सुस्त है, और फिल्म आज से 8-10 साल पहले बनने वाली कम-बजट की इंडिपेंडेंट फिल्मों की याद दिलाती है.
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केवल इसके अलहदा विचार को परदे पर आकार लेते हुए देखने के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है. कुछ नहीं तो राजीव खंडेलवाल की एक और ईमानदार व दमदार परफॉर्मेंस के लिए इसे देखा जा सकता है. ऐसा करके आप ऑफबीट फिल्में बनाने वालों की हौसला अफजाई करने वालों में भी शामिल हो जाएंगे.